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आलोचना >> साहित्य का समाजशास्त्र

साहित्य का समाजशास्त्र

बच्चन सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15963
आईएसबीएन :9788180312656

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राजनीतिक जगत की तरह आलोचना भी दो शिविरों में बँट गई है—समाजशास्‍त्र का शिविर और भाषाशास्‍त्र का शिविर। दोनों शिविर समय-समय पर एक दूसरे पर हमला करते हैं। आलोचना का संकट यह है कि क्या उसे हर हालत में शिविरबद्ध होकर ही रहना पड़ेगा? सही बात तो यह है कि हम न जीवन में विज्ञान और टेक्नोलॉजी से मुक्त हो सकते हैं और न साहित्य से। यदि साहित्य को अपनी रक्षा करनी है तो उसे विज्ञान और टेक्नोलॉजी से सहायता लेनी पड़ेगी। अत: साहित्य के रूपवादी दृष्टिकोण की एकतरफ़ा भर्त्सना नहीं की जा सकती। उसमें ऐसे तत्त्व मौजूद हैं जिनसे समाजशास्रीय आलोचना सम्पुष्ट और मुकम्मल होगी।

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